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लेखनी कहानी -08-Jul-2022 यक्ष प्रश्न 1

नहले पर दहला 


आज मैं अवकाश पर था । मैं यूं ही अवकाश पर नहीं रहता पर गोवर्धन जी की परिक्रमा करने के बाद पैर चलने से बिल्कुल मना कर देते हैं । इसलिए अवकाश लेकर गोवर्धन परिक्रमा की थकान उतार रहा था । दिन भर आराम किया तो थोड़ी राहत महसूस हुई । मेरे पैरों ने भी दर्द के नगमे गाने बंद कर मस्ती के नगमे गुनगुनाने शुरू कर दिए । मन मगन हो रहा था । 

श्रीमती जी अपने विद्यालय में गईं हुईं थीं । हम घर पर अपनी आजादी का जश्न मना रहे थे । पर यह आजादी ज्यादा देर नहीं टिक पाती है ना । किसी न किसी की नजर लग ही जाती है हमारी आजादी को । वैसे भी पत्नियों को हम पतियों की आजादी कब पसंद आती है ? उन्हें लगता है कि हम लोग आजाद कैसे रह सकते हैं ? बस, हमें फंसाने का खेल शुरू हो जाता है । 

मुझे मस्ती भरे गाने गाते देखकर शायद उन्हें जलन हुई होगी तभी तो एक षड़यंत्र के तहत वो मेरे पास आईं और कहने लगीं " आज तो घर में कुछ भी सब्जी नहीं है । आप ला दो ना " ? 
मैंने टालने के इरादे से कहा "रोज तो तुम स्कूल से आते वक्त ले आती हो । आज नहीं लाईं क्या " ? 
"आज मन नहीं किया सब्जी लेने का । आप ला दो ना" । 
मैं फंदे में फंसना नहीं चाहता था इसलिए कहा " वो रामू काका से कह देता हूं , वे ला देंगे " । 
"वो कहीं गए हुए हैं । इसलिए आपको ही लानी पड़ेगी " । 

अब तो बॉस का हुक्म हो गया था । नाफरमानी करने की हिम्मत कौन करे ? पता नहीं नाफरमानी करने की क्या सजा सुना दें वे  ?  कुछ सूझ नहीं रहा था कि करें तो क्या करें ? आखिर फंसा ही लिया अपने चंगुल में श्रीमती जी ने हमें । मगर हम भी इतनी आसानी से हार मानने वाले नहीं थे । अफसर जो ठहरे । इतनी जल्दी हथियार कहां डालते हैं अफसर  ? पैंतरा बदलते हुए हमने कहा " दाल वाल बना लो ना " । 
"अभी कल ही तो बनाई थी दाल । रोज रोज खाने की इच्छा नहीं होती है । जाओ , सब्जी लेकर आओ " । 

अब तो डबल ऑर्डर हो गया था । अब बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी । फिर भी एक आखिरी कोशिश करने का प्रयास किया । 
"घर में मंगोड़ी वगैरह तो होगी ना, वही बना लो । बहुत दिनों से खाई नहीं है " । 
"नहीं है । अभी कुछ दिन पहले ही खत्म हुई है" । 

ये प्रयास भी बेकार गया । अब तो जाना ही पड़ेगा शायद । अचानक एक बात दिमाग में आई । जिस तरह एक मरणासन्न व्यक्ति के मुंह में गंगाजल की दो बूंदें इस उम्मीद में डाल देते हैं जो कि क्या पता "गंगाजल" ही कोई चमत्कार कर जाये , और कोई औषधि तो काम कर नहीं रही है । यह आखरी कोशिश होती है बचाने की । अगर यह अस्त्र भी काम नहीं आया तो फिर कुछ नहीं हो सकता है । इसी तरह हमने भी एक आखिरी दांव खेला । 
"घर में आलू प्याज तो होंगे" ? 
"हां , आलू प्याज तो हैं । पर आपको तो आलू पसंद नहीं हैं ना " ? 
"हां , पसंद तो नहीं हैं मगर कभी कभार तो खा सकता हूं " । मैंने अंतिम अस्त्र का प्रयोग किया । 
"ठीक है । तो आलू प्याज बना लेते हैं " । 
"बहुत बढ़िया । मजा आ जायेगा " । 
"मजा तो तब आयेगा जब आप बनाओगे " । उन्होंने मेरी सारी योजना पर पानी फेरते हुए कहा । मुझे इस "धोबी पछाड़" की उम्मीद जरा सी भी नहीं थी । उन्होंने तो एक ही चाल में सारी बाजी ही पलट दी थी । सीधे ही "चैकमेट" दे दी थी । 

मैं आसमान से धरती पर धड़ाम से गिरा । 
देवानंद की फिल्म गाइड का गाना याद आ गया । 
"क्या से क्या हो गया , देवीजी  बहाने बनाने में
चाहा क्या , क्या मिला , बाजार जाने से बचने में " 

मैं हारी हुई बाजी को जीतने की कोई चाल सोच ही रहा था कि श्रीमती जी ने मेरी आंखों में आंखें डालकर और लबों पर एक तिरछी मुस्कान बिखेरते हुए कहा 

"सुनो ना , आप बहुत अच्छी सब्जी बनाते हो । लॉकडाउन में तो आपने बहुत अच्छी अच्छी डिशेज बनाकर खिलाई थीं । आपको कुछ भी बनाए हुए बहुत दिन हो गए हैं । आज ये आलू प्याज की सब्जी आप बना दो ना , प्लीज़" । 

बीवियों के पास यह अभोघ ब्रह्मास्त्र होता है । हुस्न का ऐसा जाल बिछाती हैं कि चालाक से चालाक पति भी उसमें फंस ही जाता है । आंखों में आंखें डालकर एक तिरछी मुस्कान बिखेर कर "प्लीज़" कहकर कुछ भी करा लेती हैं ये बीवियां हम पतियों से । ऐसी गुगली डालती हैं कि सीधे ही "क्लीन बोल्ड हो जाते हैं हम लोग। फिर कोई डिफेंस काम नहीं आता है " । 

शक की कोई गुंजाइश नहीं थी अब । सीधे क्लीन बोल्ड हो चुके थे हम । इसलिए अंपायर के उंगली उठाने का इंतजार किये बिना ही हम पैवेलियन यानि किचन की ओर चल दिए । मेरे लबों पर एक गीत सजने लगा 
जो उनकी तमन्ना है बरबाद हो जा 
तो ए दिल मोहब्बत की किस्मत बना दे 

हमारी आदतों से वे भली-भांति वाकिफ हैं इसलिए उन्होंने आलू , प्याज , टमाटर , लहसुन , अदरक वगैरह साफ कर उनके छोटे छोटे पीस तैयार कर दिए । मेरे लिए इतना सहारा बहुत था । 

हमने भी अपनी पाक कला का भरपूर प्रदर्शन किया और बड़ी शानदार सब्जी बना दी ‌ । मगर यह शानदार तब ही कहलाएगी जब श्रीमती जी इसे चखकर शानदार घोषित कर देंगी । हमारी श्रीमती जी इस मामले में बहुत कंजूस हैं । वे कभी तारीफ नहीं करती हैं । 

जब हम खाना खाने बैठे तो दिल धुक धुक कर रहा था । बिल्कुल उसी तरह जब बहू पहली बार खाना बना रही हो और सास खाने बैठी हो तो बहू के दिल में धुक धुकी होती रहती है । मगर ये धुकधुकी ज्यादा देर नहीं रही । बड़ी जल्दी रिजल्ट घोषित कर दिया गया । हमें डिस्टिंक्शन मार्क्स मिले थे । श्रीमती जी ने भूरि भूरि प्रशंसा की हमारी बनी हुई सब्जी की । आज तो वे कमाल पे कमाल किए जा रही थीं । आदत के विपरीत उन्होंने हमारी सब्जी की गजब की तारीफ कर,दी । तबीयत खुश हो गई।  

खाना खाने से ज्यादा प्रशंसा सुनने में मजा आया । अब तक केवल जली कटी ही सुनने को मिलती थी आज प्रशंसा मिल रही थी । लगता है कि गोवर्धन बाबा की कृपा हो गई है । 

बोलो राधे राधे । 

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3 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 11:24 AM

Very nice

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shweta soni

19-Sep-2022 11:42 PM

बेहतरीन रचना

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Gunjan Kamal

14-Jul-2022 06:56 AM

बहुत खूब

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